यह एक ऐसा नाम है जिसे कोई परिचय की जरूरत नहीं है। यह उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसकी उचाई समुद्रतल से 3584 मीटर है। केदारनाथ मंदिर को हिन्दुओं के पवित्रतम छोटे चार धामों में से एक माना जाता है और १२ ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊँचा ज्योतिर्लिंग है। केदारनाथ का मन्दिर हिमालय की 'केदार' नामक चोटी पर स्थित है। इसके पूर्व दिशा में अलकनंदा नदी बहती है। जिसके पावन तट पर भगवान बद्री विशाल का पवित्र देवालय है तथा पश्चिम में मन्दाकिनी नदी के किनारे भगवान श्री केदारनाथ विराजमान हैं। इन दोनों नदिया का संगम रुद्रप्रयाग में होता है और वहाँ से ये एक धारा बनकर पुन: देवप्रयाग में भागीरथी में मिल जाती है। और आगे जाकर गंगा के नाम से जानी जाती है।
यह तीर्थस्थान सर्दियों के दौरान बन्द रहता है क्योंकि इस दौरान क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है। इस दौरान भगवान केदारनाथ की पालकी को उखीमठ पहुँचा दिया जाता है और पुरे शीतकाल पूजा यही होती है।
केदारनाथ कैसे जाएं
हरिद्वार --> ऋषिकेश --> देवप्रयाग --> श्रीनगर --> रुद्रप्रयाग --> अगस्तमुनि --> गुप्तकाशी --> फाटा --> सोनप्रयाग --> गौरीकुंड (गौरीकुंड से 16 किलोमाटर का रास्ता आपको पैदल या पालकी/ घोड़े से तय करना होता है।)
निकटतम हवाई अड्डा : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा जो केदारनाथ से २३८ किलोमीटर दूर है
निकटतम रेलवे स्टेशन : ऋषिकेश मै है जो यहाँ से लगभग २१६ किलोमीटर दूर है
मै मई २०१८ को अपनी बहुत प्रतीक्षित यात्रा को अपने चार और दोस्तों के साथ ग़ाज़ियाबाद से सुबह ६ बजे निकला। रस्ते भर मजे करते हम लगभग १०:३० पर हरिद्वार पहुंचे। वह हमने सुबह का नाश्ता किया और अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया। हम ऋषिकेश को पार करते हुए देव प्रयाग पहुंचे। रास्ते मै आते हुए हमे कई मनमोहक द्र्श्य दिखे पर देव प्रयाग मै दो नदीयो अलकनंदा तथा भागीरथी के संगम को देख कर हमने थोड़ा विश्राम करने की सोची। यह द्र्श्य बड़ा ही अद्भुत है और लगता है इसे घंटों अपलक निहारते रहें। दोनों की धाराएं मिलते हुए साफ देखी जा सकती हैं। अलकनंदा नदी का जल थोड़ा मटमैला-सा है, जबकि भागीरथी नदी जल का निरभ्र आकाश जैसा नीला है। इसी संगम स्थल के बाद से नदी को 'गंगा' के नाम से जाना जाता है।
देव प्रयाग के तीन धारा नमक एक स्थान पर हमने दिन का खाना खाया. यहाँ एक विशेष प्रकार का स्थानीय रायता और मसाला शिकंजी मिलती है जिसे आते या जाते समय एक बार सेवन जरूर करे।
हमने अपनी यात्रा फिर से शुरू की और श्रीनगर पहुंचे। श्रीनगर गढ़वाल में एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे 'धारी देवी' कहा जाता है। इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं। मान्यता अनुसार ये देवी उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।
बदरीनाथ राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है।
स्थानीय लोगों की चेतावनी के बावजूद धारी देवी की इस मूर्ति को श्रीनगर विद्युत परियोजना के तहत 16 जून 2013 मै प्राचीन मंदिर को तोड़ दिया और मूर्ति को मूल स्थल से हटाकर अन्य जगह पर रख दिया और उसी रात को एक ग्लेशियर टूटा और फिर प्रकृति की विनाशलीला हुई। पहाड़ी बुजुर्गों अनुसार विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है। शाम छह बजे मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाया गया और रात्रि आठ बजे तबाही शुरू हो गई।
हमने इस सिद्धपीठ के दर्शन किये और अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया। हमारा अगला पड़ाव रुद्रप्रयाग था। रूद्र प्रयाग पहुंच कर स्थानीय दुकानों पर चाय पीते हुए मुझे पता चला की पांच केदार की तरह पांच प्रयाग भी है। प्रयाग मतलब एक ऐसा स्थान जहा दो नदियों के संगम हो। उत्तराखंड मै पांच पवित्र प्रयाग है।
१. देवप्रयाग
२. रूद्रप्रयाग
३. करणप्रयाग
४. विष्णुप्रयाग
५. नंदप्रयाग
बाकि तीनो प्रयाग बद्रीनाथ जाते हुए रस्ते मै पड़ते है। रुद्रप्रयाग से दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा बद्रीनाथ को जाता है। हम अपनी यात्रा मै आगे बड़े। अब शाम के ५ बज चुके थे। हमने निर्णय लिया की रात होने वाली है तो हम अगला शहर मै ही रात को विश्राम करें। थोड़ी ही देर मै हम अगस्तमुनि नामक जगह पहुँचे। वहा हमने एक गेस्ट हाउस मै रूम लिया। और रात को यही विश्राम किया।
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